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हार गया फौजी बेटा एवं अन्य कहानियाँ

प्रदीप श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15660
आईएसबीएन :978-1-61301-674-9

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सतरंगी यथार्थ की पाँच कहानियाँ

प्रदीप श्रीवास्तव ने अपने प्रथम उपन्यास ‘मन्नू की वह एक रात’ से ही पाठक-वर्ग का ध्यान आकृष्ट किया है। उपन्यास संवेदना के विस्तार की प्रक्रिया है जबकि कहानी संवेदना की सघनता की। ‘मेरी जनहित याचिका एवं अन्य कहानियां’ कहानी संग्रह के बाद प्रदीप के अगले संग्रह ‘हार गया फ़ौजी बेटा एवं अन्य कहानियां’ - की पांचों कहानियां रचनात्मक संवेदना की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

वर्तमान समय में सृजनात्मक गतिविधियां वैश्विक धरातल पर स्वयं को स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील होती हैं। प्रदीप अपने उत्तर आधुनिक चिंतन के कारण ‘ग्लोबल इज लोकल - लोकल इज ग्लोबल’ के विचार-सूत्र को आत्मसात करते हुए अपनी रचनाधर्मिता को आख्यान में परिवर्तित करते  हैं। अपने आस-पास के बहुरंगी यथार्थ को कथा-संरचना में प्रदीप एक अनिवार्य तत्व के रूप में प्रयोग करते हैं। समकालीन समाज की भयावह स्थितियों को बड़ी सहजता से इन कहानियों में अनुस्यूत किया गया है। प्रदीप का कथा-लेखन पाठकीयता एवं मार्मिकता से युक्त है। अपनी पूर्व कथा-कृतियों के अनुरूप कथा-रस से युक्त यह कहानी-संग्रह लेखक के संवेदनात्मक विकास का प्रतिफलन है। पूरी उम्मीद है कि ये कहानियां आपको न केवल  रचनात्मकता का आस्वाद देंगी बल्कि अलग तरह से सोचने के लिए विवश करेंगी।

कथाक्रम

  1. मैं, मैसेज और तज़ीन

  2. हार गया फ़ौजी बेटा

  3. भुइंधर का मोबाइल

  4. किसी ने नहीं सुना

  5. नुरीन

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